मातु व पितु पूजन दिवस पर विशेष क्या कहते हैं -पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल
जिन मात पिता की सेवा करी तिन और की सेवा करी ना करी जिनके ह्रदय श्रीराम बसे तिन और का नाम लिया न लिया, पूजन से भी बढ़ कर माता पिता की सेवा महत्वपूर्ण है, सिर्फ उत्तराखण्ड ही नहीं वरन संपूर्ण राष्ट्र के युवा वर्ग से अनुरोध है, कि इस लेख पर विशेष ध्यान दें, हम वर्ष भर में कोई दिवस मनाते है, परन्तु यदि पौराणिक बातों पर ध्यान देते हुए धर्म पर आधारित दिवस मनाये तो क्या कहने, माता पिता से बढ़कर संसार में कुछ भी नहीं है, किसी भी वेद पुराण में हमै यही शिक्षा मिलती है, महाभारत की कहानी में देखलैं यक्ष युधिष्ठिर संवाद में जब यक्ष ने पूछा कि सबसे बड़ा कौन है, युधिष्ठिर का जबाब था माता आसमान से ऊचा युधिष्ठिर का जबाब था पिता का स्थान आकाश से भी ऊंचा है, महर्षि वेदव्यास जी भी एक, स्थान पर लिखते हैं प्रिणाति मातरं येन प्रथिवी तेन पूजिता अर्थात जो माता को प्रसंन्न करता है समझे उसने प्रथिवी माता की पूजा की है, इसीलिए तो कहागया है माता गुरु तरे भूमे अर्थात माता भूमि से भी भारी है, माता अपनी संतान के लिए अपना सारा सुख सकून बलिदान करती है, स्वयं खाये न खाये लेकिन बच्चों को खिलाकर ही तर्पत होती है, इसलिए भारतीय संस्कृति और सभ्यता के प्रेरणा श्रोत वेद उपनिषदों रामायण महाभारत गीता सभी धर्म ग्रंथ में तथा महापुरुषों की मात् पितु भक्ति के प्रमाण की एक स्वर में प्रकार के आधार पर आधारित पर्व की नीव रखी गयी जिसे हम श्राद्ध पर्व कहते हैं, मनु स्मृति में भी कहा जाता है संतान सैकड़ों वर्षों तक माता पिता की सेवा करे लेकिन फिर भी प्रसिद्ध.प्रसवपीड़ा पालन शिक्षा आदि में माता पिता जो कष्ट सहते है संतान उसका बदला नहीं चुका सकतीं, महापुरुषों में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम श्री गणेश भीष्म पितामह श्रवण कुमार नचिकेता भक्त पुण्डरीक इनके उदाहरण है,