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आज होगी डिकर ( हरकाली) पूजा । आज सायंकाल होती है हर काली पूजा डिकर का अर्थ है वनस्पतियों से बनाई जाने वाली प्रतिमा। हरेले की पूर्व संध्या को घास के तृणों से स्थापित हर काली की प्रतिमाओं जिन्हें कुमाऊनी भाषा में डिकर कहते हैं। श्रद्धा आस्था और विश्वास के साथ पूजा अर्चना की जाती है। हरेले की पूर्व संध्या पर निम्न मंत्रों के साथ पूजन का विधान है। हर नाम समुत्तपन्ने हर काली हर प्रिय।सर्वदा सस्यमूर्तिस्ये प्रणतार्ते हरे नम: ।। कुमाऊं के लगभग सभी गांव में शुद्ध स्थान की मिट्टी या आटे से शिव पार्वती गणेश नंदी मूषक आदि की प्रतिमाएं बनाकर जिस जगह पर हरेला बोया जाता है हरेला काटने से 1 दिन पूर्व उसी स्थान पर इनकी पूजा की जाती है। माना जाता है जब भगवान विष्णु हरशयनी एकादशी पर 4 माह की निद्रा पर चले गए तब सभी शक्तियां मनुष्य की हर प्रकार से रक्षा करती हैं। चंद राजाओं के शासनकाल में इसका विशेष महत्व था। सावन के अधिष्ठाता देव भगवान शिव हैं। जो प्रचंड वेग रूपी जल धाराओं से प्रकृति एवं जीव को बचाने में समर्थ हैं। इसी दिन से शिव पूजा का आरंभ भी होता है। सुधी पाठकों से विनम्र निवेदन है हमारी इस परंपरा को लुप्त होने से बचाने में सभी जन सहयोग करें। आज के समय में डिकर पूजन की परंपरा लगभग समाप्त होने जा रही है। बिखर देवी देवताओं की मिट्टी की मूर्तियां हैं । जो घर की महिलाओं द्वारा बनाई जाती है चिकनी मिट्टी में रुई मिलाकर डिकरे बनाये जाते हैं, । सूख जाने के बाद इन पर कमेट मिट्टी या चावल के घोल से तैयार सफेद रंग से लेप किया जाता है। तत्पश्चात इन्हें गोद मिले मिट्टी के रंगो या उपलब्ध रंगों से रंगा जाता है। हरेला पर्व मुख्य रूप से किसानों का त्यौहार है और प्रतिवर्ष शिव पार्वती के विवाह की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इस अवसर पर मुख्य रूप से शिव पार्वती गणेश और कार्तिकेय तथा उनकीसहचरियों के डिकरे बनाये जाते हैं । हर काली के दिन परिवार के पुरोहित की सहायता से गृह लक्ष्मी इनका पूजन करती हैं । पुरोहित संस्कृत में मंत्रोच्चार करता है। हेहर काली मैं तुम्हारे चरणों में शीश नवाता हूं। हे देव तुम जो सदा धान के खेतों में निवास करने वाले हो और अपने भक्तों के दुख हरने वाले हो। इसके बाद पूजा पूजा का शेष भाग दूसरे दिन संक्रांति के दिन पूरा किया जाता है। लेखक श्री पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल,

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