उत्पत्ति का एकादशी या उत्पन्ना एकादशी व्रत का क्या है शुभ मुहूर्त
उत्पत्ति का एकादशी या उत्पन्ना एकादशी व्रत,,,,,,,,, शुभ मुहूर्त,,,,,,,,, मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष एकादशी को उत्पन्ना एकादशी कहते हैं। इस बार सन् 2021 में दिनांक 30 नवंबर दिन मंगलवार को उत्पन्ना एकादशी है। एकादशी तिथि प्रारंभ दिनांक 30 नवंबर दिन मंगलवार प्रातः 4:13 से तथा एकादशी समापन दिनांक 1 दिसंबर 2021 को प्रातः 2:13 पर होगा। व्रत का पारायण द्वादशी तिथि में 1 दिसंबर प्रातः 7:34 के बाद किया जाएगा। 30 नवंबर को हस्त नक्षत्र रात्रि 8:35 तक है तदुपरांत चित्रा नक्षत्र उदय होगा। इस दिन आयुष्मान नामक योग रात्रि 12:01 तक है। बव नामक करण 1 दिसंबर प्रातः 2:16 तक है। यदि बात चंद्रमा की स्थिति की करें तो इस दिन चंद्रदेव पूर्णरूपेण कन्या राशि में होंगे। उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा, ,,,,,,,,, सूत जी कहते हैं हे ऋषियो इस व्रत का वृतांत और उत्पत्ति प्राचीन काल में भगवान श्री कृष्ण जी ने अपने परम भक्त धर्मराज युधिष्ठिर से कही थी वही वृतांत मैं तुमसे कहता हूं। एक समय धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि हे नंद नंदन एकादशी व्रत किस विधि विधान से किया जाता है। और उसका क्या फल प्राप्त होता है। उपवास के दिन क्या-क्या करना चाहिए। आज कृपा करके यह सब मुझे बताइए। धर्मराज युधिष्ठिर के वचन सुनकर भगवान श्री कृष्ण कहने लगे हे युधिष्ठिर! मैं तुमसे एकादशी व्रत के महात्म्य को कहता हूं। सुनिए सर्वप्रथम हेमंत ऋतु में मार्गशीर्ष एकादशी से इस व्रत को प्रारंभ किया जाता है। दशमी को सायंकाल भोजन के बाद अच्छी प्रकार से दांतून करें ताकि अन्न का अंश मुंह मैं न रह जाए। रात्रि को भोजन कदापि न करें। ना अधिक बोलें। एकादशी के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सर्वप्रथम व्रत का संकल्प करें। तत्पश्चात शौच आदि से निवृत्त होकर शुद्ध जल से स्नान करें। व्रत करने वाला व्यक्ति चोर पाखंडी पर स्त्री गमन करने वाला निंदक मिथ्या भाषी तथा किसी प्रकार के पापी व्यक्ति से बात न करें। स्नान के पश्चात धूप दीप नैवेद्य आदि 16 चीजों से षोडशोपचार भगवान का पूजन करें। रात को दीप दान करें। रात्रि में सोना या प्रसंग नहीं करना चाहिए। संपूर्ण रात्रि भजन कीर्तन आदि करना चाहिए। जो कुछ पहले जाने अनजाने में पाप हो गए हो उनकी क्षमा मांगनी चाहिए।जो मनुष्य उपरोक्त लिखी विधि के अनुसार एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें शंखोद्धार तीर्थ में स्नान करके भगवान के दर्शन करने से जो फल प्राप्त होता है वह एकादशी व्रत के सोलहवें भाग के भी समान नहीं है। व्यतिपात के दिन दान देने का 100000 गुना फल प्राप्त होता है। संक्रांति से 400000 गुना तथा सूर्य चंद्र ग्रहण में स्नान करने से जो पुण्य प्राप्त होता है वही पुण्य इस एकादशी व्रत को करने से मिलता है। अश्वमेध यज्ञ करने से 100 गुना फल तथा 100000 तपस्वी यों को 60 वर्ष तक भोजन कराने से 10 गुना ब्राह्मणों तथा ब्रह्मचारी यों को भोजन कराने से हजार गुना पुण्य भूमि दान करने से होता है इससे हजार गुना पुण्य कन्यादान से प्राप्त होता है। इसी से भी 10 गुना पुण्य विद्या दान से होता है। भूखे को भोजन कराने से होता है। अतः अन्नदान के समान इस संसार में कोई ऐसा कार्य नहीं है जिससे देवता एवं पितर दोनों तृप्त होते हैं। परंतु एकादशी के व्रत का पुण्य इन सबसे अधिक होता है। हजारों यज्ञों से भी अधिक फल इसका होता है। इस व्रत का प्रभाव देवताओं को भी दुर्लभ है। रात्रि को भोजन करने वाले को उपवास का आधा फल प्राप्त होता है जबकि निर्जल व्रत करने वाले का महात्म्य तो देवता भी वर्णन नहीं कर सकते। तब धर्मराज युधिष्ठिर कहने लगे कि हे भगवान! आपने हजारों यज्ञ और लाखों गोदान को एकादशी व्रत के बराबर नहीं बताया है सो यह तिथि सब तिथियों से उत्तम कैसे हुई यह भी बताने की कृपा कीजिए। तब भगवान श्रीकृष्ण कहने लगे हे युधिष्ठिर! सतयुग में मुर नामक एक दैत्य उत्पन्न हुआ वह बड़ा बलवान और भयानक था। उस प्रचंड दैत्य ने इंद्र आदित्य वसु वायु अग्नि आदि सभी देवताओं को पराजित करके भगा दिया था। तब इंद्र सहित सभी देवताओं ने भयभीत होकर भगवान शिव जी को सारा वृत्तांत कहा बोले हे कैलाशपति! मुर नामक दैत्य से भयभीत होकर सब देवता मृत्युलोक में फिर रहे हैं। तब भगवान शिव जी ने कहा हे देवताओ! तीनों लोकों के स्वामी भक्तों के दुखों का नाश करने वाले भगवान विष्णु की शरण में जाओ। वही तुम्हारे दुखों को दूर कर सकते हैं। शिव जी के ऐसे वचन सुनकर सभी देवता क्षीर सागर मैं पहुंचे। वहां भगवान को देख हाथ जोड़कर स्तुति करने लगे। हे देवताओं द्वारा स्तुति करने वाले प्रभु आपको बारंबार नमस्कार है। देवताओं की रक्षा करने वाले मधुसूदन आपको नमस्कार है। आप हमारी रक्षा करें। दैत्यों से भयभीत होकर हम सब आप की शरण में आए हैं। आप इस संसार के माता-पिता हैं उत्पत्ति एवं पालनकर्ता और संहार करने वाले हैं। सब को शांति प्रदान करने वाले हैं। आकाश पाताल भी आप ही हैं। आपके शिवाय तीनों लोकों में चर तथा अचर कुछ भी नहीं है। हे भगवान दैत्यों ने हमें जीतकर स्वर्ग से भ्रष्ट कर दिया है। हम सभी देवता इधर-उधर भागे फिर रहे हैं। आप उन राक्षसों से हमारी रक्षा करें। इंद्र के ऐसे वचन सुनकर भगवान विष्णु कहने लगे हे इंद्र ऐसा मायावी राक्षस कौन है? जिसने हम सब देवताओं को जीत लिया है? उसका नाम क्या है? उसमें कितना बल है? यह सब मुझे बताइए। भगवान के ऐसे वचन सुनकर इंद्र बोले भगवान प्राचीन समय में एक नाडीजंघ नामक राक्षस था। उसके महा पराक्रमी और लोक विख्यात मुर नामक 1 पुत्र है उसकी चंद्रावती नामक नगरी है। उसी ने सब देवताओं को स्वर्ग से निकालकर अपना अधिकार जमा लिया है। इससे इंद्र वायु अग्नि आदि देवताओं के स्थान पर अधिकार कर लिया है। वह सूर्य बनकर स्वयं प्रकाश करता है। स्वयं ही मेघ बन बैठा है। हे असुर निकंदन! उस दुष्ट को मार कर देवताओं की रक्षा कीजिए। यह वचन सुनकर भगवान ने कहा हे देवताओं! मैं शीघ्र ही उसका संहार करूंगा। तुम चंद्रावती नगर जाओ ऐसा कहकर भगवान सहित सभी देवताओं ने चंद्रावती नगर को प्रस्थान किया। उस समय दैत्य मुर सेना सहित युद्ध भूमि में गरज रहा था। उसकी भयंकर गर्जना सुनकर सभी देवता डर के मारे चारों दिशाओं में भागने लगे। जब स्वयं भगवान रणभूमि में उतरे तो राक्षस उन पर भी अस्त्र शास्त्र आयुध लेकर दौड़े। भगवान ने उन्हें सर्प के समान अपने बाणों से वेध डाला । बहुत से राक्षस मारे गए। केवल मुर बचा रहा । वह अविचल भाव से भगवान के साथ युद्ध करता रहा। भगवान जो भी तीक्ष्ण बाण चलाते वह उसके लिए पुष्प सिद्ध हो रहा था। उसका शरीर छिन्न-भिन्न हो गया किंतु वह लगातार युद्ध करता रहा दोनों के बीच म ल्ल युद्ध भी हुआ। 10000 वर्षों तक उनका युद्ध चलता रहा। किंतु मुर नहीं हारा थककर भगवान बद्रिकाश्रम चले गए। वहां हेमवती नामक सुंदर गुफा थी। उसमें विश्राम करने के लिए भगवान उसके अंदर प्रवेश कर गए। यह गुफा 12 योजन लंबी थी। और उसका एक ही द्वार था। विष्णु भगवान वहां योग निद्रा में सो गए।मुर भी पीछे पीछे आ गया। और भगवान को सोया देखकर मारने को उद्धत हुआ।इसी समय भगवान के शरीर से उज्जवल क्रांति मय रूप वाली देवी प्रकट हुई। देवी ने राक्षस मुर को ललकारा युद्ध किया और उसे तत्काल मौत के घाट उतार दिया। श्री हरि विष्णु भगवान जब योग निद्रा से उठे तो सब बातों को जानकर उस देवी से कहा कि आपका जन्म एकादशी के दिन हुआ है। अतः आप उत्पन्न ना एकादशी के नाम से पूजित होंगी। आपके भक्त वही होंगे जो मेरे भक्त हैं।