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वरुथिनी एकादशी व्रत,, वरुथिनी का अर्थ होता है सुरक्षित या जिसे बचाकर रखा जाये, इसीलिए भगवान विष्णु के भक्त सुखमय जीवन की कामना के साथ यह व्रत रखते हैं, इसबार यह व्रत 7 म,ई 2021 को पड रहा है, यानि शुक्र वार को, पौराणिक कथा के अनुसार धर्म राज युधिष्ठिर भगवान श्री कृष्ण जी से इस व्रत के बारे में पूछते हैं कि हे नन्द नन्दन वैसाख कृष्ण पक्ष एकादशी व्रत का क्या नाम है इसकी क्या विधी है और इसके करने से क्या फल प्राप्त होता है❓ आप विस्तार पूर्वक मुझे बताइये, आपको मैं नमस्कार करता हूँ, श्री कृष्ण कहते हैं कि हे राजेश्वर! इस एकादशी का नाम वरुथिनी एकादशी है, यह सौभाग्य देने वाली है, सब पापों को नष्ट करने वाली है, तथा अन्त मै मोक्ष प्रदान करने वाली है, इस व्रत को यदि कोई अभागन स्त्री करे तो उसे सौभाग्य मिलता है, इसी एकादशी व्रत के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग को गये, वरुथिनी एकादशी व्रत का फल दस हजार वर्ष तक तपस्या करने के बराबर होता है, शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि हाथी के दान घोड़े के दान से बडा होता है, भूमि दान हाथी दान से बड़ा तिल दान भूमि दान से बड़ा स्वर्ण दान तिल दान से बड़ा परन्तु अन्न दान स्वर्ण दान से बड़ा होता है, अन्न दान से श्रेष्ठ कोई दान नही है, हाँ कन्या दान और अन्न दान लगभग बराबर होते हैं, आगे श्री कृष्ण कहते हैं, कि राजा मान्धाता बहुत दानी और तपस्वी राजा माने जाते थे, उन्की ख्याति चारों ओर फैली थी, एक बार वो जंगल में तपस्या कर रहे थे, तभी वहाँ एक भालू आया और उनके पैरों को खाने लगा, इसके बाद भी राजा मान्धाता अपनी साधना में लीन रहे उनहे क्रोध भी नहीं आया, उनहोंने भालू से कुछ नहीं कहा, लेकिन जब उन्हें दर्द और पीड़ा अधिक होने लगी तो राजा ने भगवान विष्णु का स्मरण किया, भक्त की पुकार पर भगवान विष्णु राजा की सहायता के लिए आये और राजा के प्राण बचाये, लेकिन भालू तबतक राजा के पैरों को अत्यधिक हानि पंहुचा चुका था, राजा यह देखकर दुखी हुए, लेकिन भगवान विष्णु ने कहा कि हे राजन परेशान न हो क्युकी भालू ने तुम्हें उतनी ही हानि पंहुचा जितना पिछले जन्म में तुम्हारे पापकर्म थे, भगवान विष्णु ने राजा से कहा कि तुम्हारे पैर ठीक हो जायंगे यदि तुम मथुरा की भूमि पर वरुथिनी एकादशी व्रत करोगे, राजा ने भगवान की बात का पालन किया, और उसके पैर ठीक हो गये, और राजा अन्त में मोक्ष को प्राप्त हुआ,, पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल

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