वैसाख मास की शुक्ल पक्ष में आने वाली मोहिनी एकादशी में इस बार क्या रहेगा खास

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मोहिनी एकादशी व्रत,, वैसाख मास की शुक्ल पक्ष एकादशी व्रत को मोहिनी एकादशी व्रत कहते हैं, एसा विस्वास किया जाता है कि यह तिथि सब पापों को हरने वाली और उत्तम है, इस दिन जो व्रत रखता है उसके व्रत के प्रभाव से मोहजाल से छुटकारा पा जाते है, इस बार 22 व23 म ई को यह एकादशी व्रत पड रहा है, अर्थात 22 को स्मार्त तथा 23 को वैष्णव सम्प्रदाय की है, इस दिन भगवान विष्णु ने देवताओं को अमृत पान कराने के लिए मोहिनी रूप धारण किया था, एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है, आइये जाने एकादशी व्रत शुभ मुहूर्त कब है, एकादशी तिथि प्रारंभ 22 म ई 2021 प्रातः 9 बजकर 15 मिनट तथा एकादशी तिथि समाप्त होगी दिनांक 23 म ई 2021 प्रातः 6 बजकर 42 मिनट तक , अब जानते हैं इस व्रत की विधि- मान्यता है कि एकादशी व्रत एकादशी तिथि शुरू होने से शुरू हो जाता है, इस व्रत के नियम कठोर अनुशासन का पालन करना होता है, इसलिए इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए, प्रातः उठकर नित्य क्रम स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान के समक्ष व्रत का संकल्प लेना चाहिए, हरिऊं विष्णु विष्णु आदि आदि,, इसके उपरांत पूजा की चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति को स्थापित कर भगवान विष्णु का विधि पूर्वक चंदन अक्षत पंचामृत पुष्प धूप दीप नैवेद्य और फल आदि अर्पित करैं, इस दिन विष्णु सहस्त्र नाम का पाठ करना अति उत्तम माना गया है, अब शुरू करते हैं व्रत की कथा- अन्य एकादशी व्रतों की तरह इस कथा में भी धर्म राज युधिष्ठिर और भगवान श्री कृष्ण संवाद है, धर्म राज युधिष्ठिर पूछते हैं कि- हे भगवान! मैं आपको नमस्कार करता हूँ, आपने वैसाख कृष्ण एकादशी वरुथिनी एकादशी के बारे में विस्तार पूर्वक बताया अब आप वैसाख शुक्ल एकादशी का क्या नाम है इसकी क्या कथा है, इस व्रत की क्या विधि है सब विस्तार पूर्वक बताइये, भगवान श्री कृष्ण कहने लगे हे धर्म राज युधिष्ठिर! वैसाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी एकादशी व्रत के नाम से जाना जाता है, मैं आपसे कथा कहता हूँ जिसे महर्षि वशिष्ठ जी ने श्री राम चन्द्र जी से कही थी, राजन कृपया ध्यान पूर्वक सुनिए, एक समय श्री राम जी बोले हे गुरु देव! कोई ऐसा व्रत बताइये जिससे समस्त पाप और दुख का नाश हो जाये, मैंने सीता जी के वियोग मे बहुत दुख भोगे है, महर्षि वशिष्ठ बोले हे राम! आपने बहुत सुन्दर प्रश्न किया है आपकी बुद्धि अत्यंत पवित्र है, यद्यपि आपका स्मरण करने से ही मनुष्य पवित्र हो जाता है, तब भी लोक हित में यह प्रश्न अच्छा है, वैसाख मास शुक्ल पक्ष में जो एकादशी आती है इसका नाम मोहिनी एकादशी है, इस व्रत के करने से मनुष्य सब पापों और दुखों से छूट कर मोहजाल से मुक्त हो जाता है, इसकी कथा कहता हूँ ध्यान पूर्वक सुनो, सरस्वती नदी के तटपर भद्रावती नाम की एक नगरी में द्युति मान नामक चंद्र वंशी राजा राज्य करता था, वही धन धान्य से सम्पन्न पुण्य वान धनपाल नामक वैश्य भी रहता था, वह अत्यंत धर्मालु और विष्णु भक्त था, उसने नगर में अनेक भोजनालय प्याऊ कुऐं सरोवर धर्मशाला आदि बनवाये थे, उसके पांच पुत्र थे, सुमना सुबुद्धि मेधावी सुकृति धृष्ट बुद्धि पांचवा पुत्र धृष्ट बुद्धि महापापी था, वह पितर आदि को नहीं मानता था, वह वैश्या और दुराचारि लोगों की संगत में रह कर जुवा खेलना पर स्त्री भोग विलास करता था, अपने कुकर्मो से वह अपने पिता के धन को नष्ट करता था, इन्हीं कारणों से त्रस्त होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया, घर से निकलने के बाद वह अपने गहने वस्त्र आदि बेचकर अपना निर्वाह करने लगा जब उसका सबकुछ नष्ट हो गया तो वैश्या और दुराचारि लोगों ने उसका साथ छोड़ दिया, वह भूख प्यास से दुखी रहने लगा, कोई सहारा न देखकर चोरी करना सीख गया, एक बार वह पकडा गया तो वैश्य का पुत्र जानकर चेतावनी देकर छोड़ दिया गया, मगर दूसरी बार पकड़ में आ गया, राजाज्ञा ने इस बार उसे कारागार में डाल दिया गया, उसे अत्यंत दुख दिया गया, बाद में राजा ने उसे नगर से निकल जाने को कहा, वह नगर से निकल कर वन में चला गया वहाँ वन्यजीवों को मार कर खाने लगा, एक दिन भूख प्यास से व्यतीत होकर वह खाने की तलाश में घूमता हुआ कौण्डिन्य ऋषि के आश्रम में पंहुच गया, उस समय वैसाख मास था, ऋषि गंगा स्नान कर रहे थे, उनके भीगे वस्त्रों के छीटे उस पर पडने से उसे कुछ सद्बुद्धि प्राप्त हुई, वह ऋषि से हाथ जोड़कर कहने लगा हे ऋषि मैंने जीवन में बहुत पाप किये है, आप इन पापों से छूटने का कोई साधारण उपाय बताऐ, उसके दीन वचनों को सुनकर ऋषि ने प्रसंन्न होकर कहा कि तुम वैसाख शुक्ल एकादशी व्रत करो इससे अनेक जन्मों के किये पाप नष्ट हो जाते है, ऋषि के वचन सुनकर प्रसंन्न हुआ और बताऐ गये विधान के अनुसार व्रत किया, हे राम! इस व्रत के प्रभाव से उसके सब पाप नष्ट हो गये, और अन्त में वह गरुड़ में बैठ कर विष्णु लोक को गया, संसार में इस व्रत से श्रेष्ठ कोई व्रत नहीं है इसके महात्म्य को पढ़ने से अथवा सुनने से एक हजार गौदान का फल प्राप्त होता है, पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल

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