बहुत महत्वपूर्ण व सर्वाथसिद्धि योग है इस बार की अपरा एकादशी व्रत या अचला एकादशी व्रत का, आइये जानते हैं क्यों ?

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अपरा एकादशी व्रत या अचला एकादशी व्रत इस बार बहुत महत्वपूर्ण योग सर्वाथसिद्धि योग में मनाई जाएगी।,,,,,, हिंदुओं के धार्मिक मान्यता के अनुसार एकादशी का अत्यधिक महत्व है। जेष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अचला एकादशी या अपरा एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की और माता लक्ष्मी की आराधना करने से अपार धन संपदा का लाभ प्राप्त होता है। इस वर्ष दिनांक 26 मई 2022 दिन गुरुवार को अचला एकादशी का व्रत रखा जाएगा।
शुभ मुहूर्त, ,,,,,,,,,, इस बार अपरा एकादशी व्रत के दिन सबसे महत्वपूर्ण आयुष्मान योग बन रहा है एकादशी के दिन आयुष्मान योग को अत्यंत शुभ योग कहा जाता है। इसमें भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना करने से दीर्घायु होने का वरदान प्राप्त होता है और आर्थिक कष्टों से मुक्ति मिलती है। इस दिन पंचांग के अनुसार एकादशी तिथि 14 घड़ी दो पल अर्थात प्रातः 10:54 बजे तक है। यह दिन नक्षत्रों के बारे में जाने तो इस दिन रेवती नामक नक्षत्र और 40 घड़ी 20 पल अर्थात अर्ध रात्रि 12:37 बजे तक रहेगा तदुपरांत सबसे पहला नक्षत्र अश्वनी नामक नक्षत्र उदय होगा। यदि आयुष्मान नामक योग की बात करें तो इस दिन 42 घड़ी 15 पल तक अर्थात रात्रि 10:11 बजे तक आयुष्मान योग रहेगा। और यदि चंद्रमा की स्थिति जाने तो इस दिन चंद्रदेव रात्रि 12:37 बजे तक मीन राशि में तदुपरांत मेष राशि में विराजमान रहेंगे।सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसबार अपरा एकादशी सर्वाथसिद्धि योग में मनाई जायेगी, जो इस दिन प्रात: 5:17 बजे से अगले दिन प्रातः 5:17 बजे तक है,
पूजा विधि, ,,,,,,,,,, अपरा एकादशी व्रत के दिन प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर पीले वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा और माता लक्ष्मी जी की प्रतिमा को पीले आसन पर विराजमान करें। तदुपरांत रोली कुमकुम का तिलक लगाएं धूप दीप नैवेद्य चढ़ाकर भगवान विष्णु की पूजा करें। जलाभिषेक करने के लिए शंख का प्रयोग करें पाठकों को बताना चाहूंगा कि शंख माता लक्ष्मी को अत्यधिक प्रिय है इसलिए शंख से जलाभिषेक या दुग्ध अभिषेक करने से माता लक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। व्रत पारण के समय ब्राह्मणों को भोजन कराएं और यथासंभव दान दें। इससे आर्थिक उन्नति और मानसिक लाभ प्राप्त होता है। पाठकों को एक और महत्वपूर्ण बात बताना चाहूंगा की एकादशी व्रत के दिन नाखून बाल आदि ना काटे और स्नान में साबुन का प्रयोग भी ना करें तथा इस दिन परिवार में कोई भी सदस्य चावल ग्रहण न करें।

अचला एकादशी व्रत कथा।, ,,,,,,, अचला एकादशी की प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन समय में माही ध्वज नामक एक धरमातमा राजा था। उसका छोटा भाई वज्र ध्वज बड़ा ही क्रूर अधर्मी तथा अन्याई था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था। उस पापी ने एक दिन रात्रि में अपने बड़े भाई की हत्या करके उसकी देह को एक जंगली पीपल के नीचे गांठ दिया। इस अकाल मृत्यु से राजा प्रेत आत्मा के रूप में उसी पीपल में रहने लगा और अनेक उत्पाद करने लगा। एक दिन अचानक धौम्य नामक ऋषि उधर से गुजरे। उन्होंने प्रेत को देखा और तपोबल से उसके अतीत को जान लिया। अपने तपोबल से प्रेत उत्पात का कारण समझा। ऋषि ने प्रसन्न होकर उस प्रेत को पीपल के पेड़ से उतारा तथा पर लोग विद्या का उपदेश दिया। दयालु ऋषि ने राजा की प्रेत योनि से मुक्ति के लिए स्वयं ही अपरा एकादशी का व्रत किया और उसे अवती से छुड़ाने को उसका पुण्य प्रेत को अर्पित कर दिया। इस पुण्य के प्रभाव से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति हो गई। वह ऋषि को धन्यवाद देता हुआ दिव्य देह धारण कर पुष्पक विमान में बैठकर स्वर्ग को चला गया। अतः अपरा एकादशी की कथा पढ़ने अथवा सुनने से मनुष्य सब पापों से छूट जाता है।
लेखक श्री पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल

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