फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को जाना जाता द्विज प्रिय संकष्टी चतुर्थी के भी नाम से,आइये जानते है कैसे

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द्विज प्रिय संकष्टी चतुर्थी व्रत,,,,,, फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को द्विज प्रिय संकष्टी चतुर्थी के नाम से जाना जाता है। इस दिन विधि विधान से गौरी गणेश की पूजा करने से सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। इस दिन षोडशोपचार पूजन व्रत कथा और आरती आदि करके गणेश जी की पूजा करके उन्हें भोग लगाना चाहिए।
शुभ मुहूर्त, ,,,,,,,,,, इस बार सन् 2022 में दिनांक 20 फरवरी दिन रविवार को संकष्टी चतुर्थी मनाई जाएगी। इस दिन चतुर्थी तिथि रात्रि 9:07 तक रहेगी। यदि नक्षत्रों की बात करें तो इस दिन हस्त नामक नक्षत्र शाम 4:42 तक रहेगा तदुपरांत चित्रा नक्षत्र उदय होगा। इस दिन बव एवं बालव नामक करण है बव नामक करण प्रातः 9:35 तक है तदुपरांत बालव नामक करण है जो शाम 9:07 तक रहेगा। इस दिन शूल नामक योग शाम 3:07 तक रहेगा। इस दिन के यदि चंद्रमा की स्थिति जाने तो इस दिन चंद्रदेव कन्या राशि में रहेंगे।
महत्व,,,,, प्रथम पूज्य भगवान श्री गणेश जी की पूजा से सभी कार्य निर्विघ्न संपन्न होते हैं। वैसे तो हर पूजा के पहले सर्वप्रथम गणेश जी की पूजा होती है लेकिन प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी व्रत किया जाता है। संकष्टी चतुर्थी को सभी कष्टों का हरण करने वाला माना जाता है। आज के दिन भगवान गणेश जी के छठवें रूप अर्थात द्विज प्रिय की पूजा अर्चना की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गणेश जी के इस रूप की पूजा अर्चना करने से यश धन वैभव एवं अच्छी सेहत की प्राप्ति होती है।
व्रत विधि, ,,,,,,, इस दिन प्रातः स्नानादि से निवृत्त होकर पूजा करनी चाहिए। और सायंकाल को चंद्र दर्शन के बाद उपवास तोड़ा जाता है। व्रत रखने वाले जातक फलों का सेवन कर सकते हैं।
पूजन विधि, ,,,,,,,,, सर्वप्रथम प्रातः 4:00 बजे उठकर स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा के लिए भगवान गणेश जी की प्रतिमा को ईशान कोण में चौकी पर स्थापित करें। चौकी पर लाल या पीले रंग का वस्त्र बिछाए। भगवान श्री गणेश जी के सम्मुख हाथ जोड़कर पूजा और व्रत का संकल्प लें। हाथ में अक्षत पुष्प एवं गंगाजल लेकर हरि ओम विष्णु विष्णु विष्णु आदि मंत्र उच्चारण सहित संकल्प लें। तदुपरांत भगवान गणेश जी को गंगाजल मिश्रित शुद्ध जल से स्नान करावे। तदुपरांत मंत्र उच्चारण सहित उन्हें गंध पुष्प आदि अर्पित करें। तदुपरांत अक्षत एवं पुष्प लेकर भगवान गणपति महाराज से अपनी मनोकामना कहें उसके बाद ” ओउम् गं गंणपतेय नम:” मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान गणेश जी को प्रणाम करें। तदुपरांत एक केले का पत्ता लें इस पर आपको रोली से एक त्रिकोण बना दें। जो त्रिकोण बनाया उसके अग्रभाग पर घी का दीपक रखें। इसी के साथ बीच में मसूर की दाल व साथ लाल साबुत मिर्च को रखें। यदि केले के पत्ते का अभाव है तो एक थाली में यह कार्य करें। पूजन उपरांत चंद्रमा को चंदन रोली मिश्रित दूध से अर्घ्य दैं । पूजन के उपरांत ध्यान पूर्वक कथा श्रवण करें अथवा कथा स्वयं पढ़ें।
व्रत कथा, ,,,,,,,, पौराणिक कथा के अनुसार सतयुग की बात है एक धरमातमा राजा का राज्य था वह राजा बड़ा धर्मात्मा था। उसके राज्य में एक अत्यंत धर्मात्मा ब्राह्मण था उसका नाम था विष्णु शर्मा। विष्णु शर्मा के 7 पुत्र थे वह सातों अलग-अलग रहते थे। विष्णु शर्मा की जब वृद्धावस्था आई तो उसने सब बहूओं से कहा तुम सब गणेश चतुर्थी का व्रत किया करो। विष्णु शर्मा स्वयं भी इस व्रत को करता था। अब बूढ़ा हो जाने पर यह दायित्व वह बहूओं को सौंपना चाहता था। जब उसने बहूओं से इस व्रत के लिए कहा तो बहूओं ने नाक भौं सिकुड़ते हुए उसकी आज्ञा न मानकर उसका अपमान कर दिया। अंत में छोटी बहू ने अपने ससुर की बात मान ली। उसने पूजा के सामान की व्यवस्था करके ससुर के साथ व्रत किया और भोजन नहीं किया ससुर को भोजन करा दिया। जब आधी रात बीती तो विष्णु शर्मा को उल्टी और दस्त लग गए। छोटी बहू ने मल मूत्र से खराब हुए कपड़ों को साफ करके ससुर के शरीर को धोया और पोंछा। और पूरी रात बिना कुछ खाए पिए जागती रही। गणेश जी ने उन दोनों पर अपनी कृपा की। ससुर का स्वास्थ्य ठीक हो गया और छोटी बहू का घर धनधान्य से पूर्ण करा दिया। फिर तो अन्य बहूओं को भी इस घटना से प्रेरणा मिली और उन्होंने भी गणेश जी का व्रत किया। 12 महीने व्रत करके दान दक्षिणा देने से परम पूज्य गणेश देव समस्त कामनाओं की पूर्ति कर जन्म जरा मृत्यु के पाश नष्ट कर अंत में अपने दिव्य लोक में स्थान दे देते हैं।बोलो गणेश जी महाराज की जै ।
एक दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है एक शहर में एक साहूकार अपनी पत्नी के साथ रहता था। दोनों की कोई संतान नहीं थी। 1 दिन साहूकार की पत्नी अपनी पड़ोसन के घर गई। जहां वह संकष्टी चतुर्थी की पूजा कर कथा कह रही थी। साहूकार की पत्नी ने कथा सुनने के बाद घर आकर अगली चतुर्थी पर पूरी विधि विधान के साथ पूजा कर उपवास रखा। भगवान गणेश जी के आशीर्वाद से साहूकार दंपति को पुत्र की प्राप्ति हुई। साहूकार का बेटा बड़ा हो गया तो साहूकार नी में भगवान गणेश जी से फिर कामना की कि उसके पुत्र का विवाह तय हो जाए। तो वह व्रत रखेगी। और प्रसाद चढ़ा एगी। परंतु बेटे का विवाह तय होने के बाद साहूकार नी प्रसाद चढ़ाना और व्रत करना भूल गई। जिससे भगवान गणेश ने नाराज होकर साहूकार के बेटे को शादी के दिन बंधक बनाकर एक पीपल के वृक्ष से बांध दिया। कुछ समय के बाद पीपल के पेड़ के पास से एक अविवाहित कन्या गुजर रही थी। तभी उसने साहूकार के बेटे की आवाज सुनी और अपनी मां को बताया। यह सारी बात जानने के बाद साहूकार की पत्नी ने भगवान गणेश जी से क्षमा मांगी और प्रसाद चढ़ाकर उपवास रखा। और बेटे के वापस मिलने की कामना करने लगी भगवान गणेश ने साहूकार के बेटे को वापस लौटा दिया। और बड़े धूमधाम से साहूकार ने अपने बेटे का विवाह किया इसी दिन से पूरे नगर में सभी लोग चतुर्थी व्रत कर भगवान गणेश जी की उपासना करने लगे।

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