बहुत महत्वपूर्ण है विभुवन संकष्टि चतुर्थी व्रत, पांडवों ने भी किया था यह व्रत,आइये जानते हैं क्यों ?

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अधिक मास के कृष्ण पक्ष की संकष्टी चतुर्थी को विभुवन संकष्टी चतुर्थी व्रत कहते हैं। यह व्रत प्रत्येक तीन वर्षों में आता है इसलिए इस व्रत की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है।इस व्रत में भगवान गणेश जी की पूजा की जाती है। इस दिन गणेश जी की पूजा करने से जीवन में आ रही सभी समस्याएं दूर हो जाती हैं। साथ ही व्यक्ति को सुख समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत में रात के समय चंद्रमा को अर्घ्य देते हैं। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही यह व्रत पूर्ण होता है।
शुभ मुहूर्त—-
इस बार विभुवन संकष्टि चतुर्थी व्रत दिनांक 4 अगस्त 2023 दिन शुक्रवार को मनाया जाएगा। इस दिन यदि चतुर्थी तिथि की बात करें तो इस दिन 17 घड़ी 53 पल अर्थात दोपहर 12:45 बजे तक तृतीया तिथि रहेगी तदुपरांत चतुर्थी तिथि प्रारंभ होगी। यदि इस दिन के नक्षत्र की बात करें तो इस दिन शतभिषा नामक नक्षत्र है। यदि योग की बात करें तो शोभन नामक योग रहेगा सबसे महत्वपूर्ण यदि इस दिन के चंद्रमा की स्थिति को जाने तो इस दिन मध्य रात्रि 11:20 बजे तक चंद्र देव कुंभ राशि में विराजमान रहेंगे तदुपरांत चंद्रदेव मीन राशि में प्रवेश करेंगे।

पूजा का शुभ मुहूर्त–दिनांक 4 अगस्त को विभुवन संकष्टी चतुर्थी के दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त प्रातः 5:39 बजे से लेकर प्रातः 7:21 बजे तक है। इसके उपरांत दूसरा मुहूर्त प्रातः 10:45 बजे से दोपहर 3:52 बजे तक है।
यदि 4 अगस्त को चंद्रोदय की बात करें तो इस दिन चंद्रोदय रात्रि 9:20 बजे पर होगा इस दिन आप चंद्रोदय होने पर चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत का पारण कर सकते हैं।
विभुवन संकष्टि चतुर्थी व्रत का महत्व—
सनातन हिंदू शास्त्रों में भगवान श्री गणेश जी को विघ्नहर्ता के नाम से भी जाना जाता है। वे अपने भक्तों की सारी विपदाओं को दूर करते हैं और उनकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं। ऐसे में विभुवन संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखकर गणपति की पूजा आराधना करने से समस्त प्रकार की बाधाएं दूर हो जाती हैं।

पांडवों को मिली थी कष्टों से मुक्ति
जानिए विभुवन संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा—-
नारद पुराण में इस कथा का वर्णन किया गया है। इस पुराण में यह बताया गया है कि किस विधि से संकष्टि चतुर्थी व्रत किया जाना चाहिए और इस व्रत के दौरान कौन सी कथा को पढ़ना चाहिए या सुनना चाहिए।
प्राचीन समय में पांडव जब द्रोपदी सहित जंगल में रहने को मजबूर हुए थे उस समय उन्होंने महर्षि वेदव्यास से यह प्रश्न किया कि हे प्रभु !हमारे दुखों का अंत कैसे होगा? इतने अधिक समय से हम पांचो पांडव और हमारी अर्धांगिनी द्रोपदी दुख भोगते आ रहे हैं। इस दुःख भरे जीवन से हमें उबारने के लिए कोई रास्ता बताएं। इस पर महर्षि वेदव्यास जी ने यह उत्तर दिया कि अधिक मास में आने वाले विभुवन संकष्टी चतुर्थी व्रत को परम पावन माना गया है। कहते हैं कि इस व्रत के प्रभाव से सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। यह व्रत विभुवन पालक भगवान श्री गणेश जी को समर्पित है। जो व्यक्ति इस दिन भगवान गणेश जी की आराधना करता है उसके सभी दुख दूर होते हैं। इसलिए आप सभी यह व्रत कीजिए। महर्षि वेदव्यास जी के कहने पर पांडवों ने द्रौपदी सहित यह व्रत किया और उन्हें सभी दुखों और कष्टों से मुक्ति मिली।
अतः विभुवन संकष्टी चतुर्थी व्रत प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिए।
तो बोलिए भगवान गणेश जी की जय!
महर्षि वेदव्यास जी की जय!
पांचों पांडवों की जय!

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