कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष एकादशी को हरी बोधनी एकादशी का क्या है महत्व,आइये जानते हैं
कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष एकादशी को हरी बोधनी एकादशी देवउठनी एकादशी प्रबोधिनी एकादशी एवं देवोत्थान एकादशी आदि नामों से जाना जाता है। भगवान विष्णु 4 माह तक शयन उपरांत इस दिन जागते हैं। अतः विष्णु के जागने के बाद ही सभी मांगलिक कार्य प्रारंभ किए जाते हैं। इस बार सन् 2021 में स्मार्थ समुदाय ने 14 नवंबर तथा वैष्णव समुदाय के लोगों की15 नवंबर को एकादशी व्रत मनाया जायेगा। एकादशी व्रत कथा, ,,,,,,,, ब्रह्माजी नारद मुनि को यह कथा बताते हैं। ब्रह्मा जी बोलते हैं हे नारद मुनि श्रेष्ठ अब पापों को हरने वाली पुण्य और मुक्ति देने वाली एकादशी का महत्व में सुनिए। पृथ्वी पर गंगा की महत्ता और समुद्र तथा तीर्थों का प्रभाव तब तक है जब तक की कार्तिक की प्रबोधिनी एकादशी तिथि नहीं आती। मनुष्य को जो फल 1000 अश्वमेघ यज्ञ और राजसुययज्ञ से मिलता है वही फल प्रबोधिनी एकादशी से मिलता है। नारद जी कहने लगे कि हे पिताजी एक समय भोजन करने रात्रि को भोजन करने तथा पूर्ण दिन उपवास करने से क्या फल प्राप्त होता है? सो विस्तार से बताइए। ब्रह्मा जी बोले हे पुत्र एक बार भोजन करने से एक जन्म रात्रि भोजन करने से दो जन्म तथा पूर्ण दिन उपवास करने से सात जन्मों के पाप नष्ट होते हैं। जो वस्तु तीनों लोकों में न मिल सके वह प्रबोधिनी एकादशी व्रत से प्राप्त हो सकती है। सुमेरू तथा मंदराचल के समान भारी पाप भी नष्ट होते हैं। अनेक जन्म में किए हुए पाप समूह क्षण भर में भस्म हो जाते हैं। संध्या न करने वाले नास्तिक वेद निंदक धर्मशास्त्र को दूषित करने वाले पाप कर्मों में रत रहने वाले धोखा देने वाले ब्राह्मण व शूद्र पर स्त्री गमन करने वाले तथा ब्राह्मणी से भोग करने वाले यह सब चांडाल के समान हैं। जो विधवा तथा सधवा ब्राह्मणी से भोग करते हैं वे अपने कुल को नष्ट कर देते हैं। जो मनुष्य इस एकादशी के व्रत को करने का संकल्प मात्र करते हैं उनके 100 जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। जो इस दिन रात्रि जागरण करते हैं उनकी आने वाली 10000 पीढ़ियां स्वर्ग को जाती हैं। नरक के दुखों से छूट कर प्रसन्नता के साथ सुसज्जित होकर वे विष्णु लोक को जाते हैं। ब्रह्महत्या आदि महान पाप भी इस व्रत के प्रभाव से नष्ट हो जाते हैं। हे मुनि श्रेष्ठ इस संसार में उसी मनुष्य का जीवन सफल है जिसने हरि बोधनी एकादशी का व्रत किया है। वही ज्ञानी तपस्वी और जितेंद्र है। इस दिन जो मनुष्य भगवान की प्रसन्नता के लिए स्नान दान तप और यज्ञ करते हैं वह अक्षय पुण्य को प्राप्त होते हैं। प्रबोधिनी एकादशी के दिन व्रत करने से मनुष्य के बाल यौवन एवं वृद्धावस्था मैं किए गए समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। अतः हे नारद तुम्हें भी यह व्रत विधिपूर्वक करना चाहिए। जो कार्तिक मास में धर्म परायण होकर अन्न नहीं खाते उन्हें चांद्रायण व्रत का फल प्राप्त होता है। इस मास में भगवान दान आदि से इतने प्रसन्न नहीं होते जितने शास्त्रों में लिखी कथाओं को सुनने से होते हैं। कार्तिक मास में जो भगवान विष्णु की कथा का एक या आधा श्लोक भी पढ़ते सुनते या सुनाते हैं उनको भी 100 गायों के दान के बराबर फल प्राप्त होता है। अतः अन्य सब कर्मों को छोड़कर कार्तिक मास में मेरे सम्मुख बैठकर कथा पढ़नी या सुननी चाहिए। जो कल्याण के लिए इस मास में हरि कथा कहते हैं वह सारे कुटुंब का क्षण मात्र में उद्धार कर देते हैं। जो भगवान विष्णु के जागते समय भगवान की कथा सुनते हैं वह सातों दीपों समेत पृथ्वी दान करने का फल प्राप्त करते हैं। कथा सुनकर वाचक को जो मनुष्य सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देते हैं उनको सनातन लोक मिलता है। एक दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार एक राजा था। उसके राज्य में प्रजा सुखी थी। एकादशी को कोई भी अन्न न बेचता न खरीदता था । सभी फलाहार करते थे। एक बार भगवान ने राजा की परीक्षा लेनी चाही। भगवान ने एक सुंदरी का रूप धारण किया। तथा सड़क पर बैठ गए। तभी राजा उधर से निकला। और सुंदरी को देखकर चकित रह गया उसने पूछा हे सुंदरी तुम कौन हो? और इस तरह यहां क्यों बैठी हो? तब सुंदरी बने भगवान बोले मैं निरार्श्रिता हूँ । नगर में मेरा कोई पहचान का नहीं है। मैं किससे सहायता मांगू ? राजा उसके रूप में मोहित हो गया था राजा बोला तुम मेरे महल में चलकर मेरी रानी बन कर रहो। सुंदरी बोली में तुम्हारी बात मानूंगी परंतु तुम्हें राज्य का अधिकार मुझे सौंपना होगा। राज्य में मेरा पूर्ण अधिकार होगा। मैं जो भी बनाऊंगी तुम्हें खाना होगा। राजा उसके रूप में मोहित था अतः उसकी सभी शर्तें स्वीकार कर ली अगले दिन एकादशी व्रत था। रानी ने हुक्म दिया कि बाजार में अन्य दिनों की तरह अन्न बेचा जाये । उसके घर में मांस मछली आदि पकवान तथा परोस कर राजा से खाने के लिए कहा यह देखकर राजा बोला रानी आज एकादशी है। मैं तो केवल फलाहार ही करूंगा तब रानी ने शर्त याद दिलाई और बोली या तो खाना खाओ नहीं तो बड़े राजकुमार का सिर काट लूंगी राजा ने अपनी स्थिति बड़ी रानी से कहीं तो बड़ी रानी बोली महाराज धर्म ना छोड़ें। बड़े राजकुमार का सिर दे दे। पुत्र तो फिर मिल जाएगा परंतु धर्म नहीं मिलेगा। इसी दौरान बड़ा राजकुमार खेल कर आ गया मां की आंखों में आंसू देख कर वह रोने का कारण पूछने लगा। तो मां ने सारी बातें बता दी। तब वह बोला मैं सिर देने के लिए तैयार हूं। पिताजी के धर्म की रक्षा अवश्य होगी। राजा दुखी मन से राजकुमार का सिर देने को तैयार हुआ तो रानी के रूप में भगवान विष्णु प्रकट होकर असली बात बताई। हे राजन तुम इस कठिन परीक्षा में पास हुए। भगवान ने प्रसन्न मन से वर मांगने को कहा तो राजा बोला आप का दिया हुआ सब कुछ है। हे भगवान हमारा उद्धार करें। इन कथाओं के अतिरिक्त हमारी देवभूमि उत्तराखंड के कुमाऊं संभाग में इस दिन किसान भाई लोग अपने बैलों को सुसज्जित करते हैं। उनके सींगों में दुर्वा से सरसौ का तेल लगाकर उन्हें च्यूडे पूजने की परंपरा है, तदुपरांत उनके माथे पर फुन बांधते है, फुन रामबांस के रेशे से बनाया जाता है, उसमें हरे गुलाबी पीले रंग ( वाटर कलर) भर कर सुसज्जित करते हैं। इसे स्थानीय भाषा में फुन कहते हैं ।लेखक श्री पंडित प्रकाश जोशी गेठिया नैनीताल ( उत्तराखंड)